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“शिव की विचित्रता, सरलता एवं उत्कृष्टता”
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
ओढ़रदानी, महेश्वर, रुद्र का स्वरूप सभी देवताओं से विचित्र है, पर यदि आप शिवशंभू की वेश भूषा का विश्लेषण करेंगे तो आपको शिव जीवन के सत्य का साक्षात्कार कराते दिखाई देंगे। यह शिव कपूर की तरह गौर वर्ण है, पर सम्पूर्ण शरीर पर भस्म लगाकर रखते है और दिखावे से दूर जीवन को सत्य के निकट ले जाते है। यह भस्म जीवन के अंतिम सत्य को उजागर करती है। अतः शिव शिक्षा देते है कि सदैव सत्य को प्रत्यक्ष रखें। यह शिव जटा मुकुट से सुशोभित होते है। जिस प्रकार शिव जटाओं को बाँधकर एक मुकुट का स्वरूप देते है वह यह शिक्षा देती है की जीवन के सारे जंजालों को बाँधकर रखों और एकाग्र होने की कोशिश करों, समस्याओं के जाल को मत फैलाओं। उसे समेटने की कोशिश करों। वे किसी भी प्रकार का स्वर्ण मुकुट धारण नहीं करते अतः मोह माया से शिव कोसों दूर है। शिव के आभूषण में भी सोने-चाँदी को कोई भी स्थान नहीं है। वे विषैले सर्पों को गलें में धारण करते है, अर्थात वे काल को सदैव स्मरण रखते है।
हर-हर महादेव के सम्बोधन के साथ हम महादेव से अपने हर दुःख और बाधाओं को हरने की प्रार्थना करते है। शिव तो क्षण भर में प्रलय कर सकते है और वही शिव विश्व के कल्याण के लिए नीलकंठ स्वरूप में सुशोभित होते है। शिव तो व्यक्ति का प्रारब्ध भी बदल सकते है, क्योंकि शिव के सामान कोई दाता ही नहीं है। ऋषि-मुनि, देव-दानव, यक्ष, गन्धर्व सभी महादेव के लिंग स्वरुप की आराधना करते है। यह लिंग स्वरुप हमें ज्ञान देता है कि शिव में भी ब्रह्माण्ड समाहित है। शिव आदि, अनंत और अजन्मा है। यदि हम अविरल भक्ति भाव से शिव की आराधना करें तो हम भी आनंद स्वरुप बन सकते है। शिव तो सबकुछ त्यागकर केवल योग साधना में ही लीन रहते है। हमें अपनी अंतर्मय दृष्टि को शिवमय बनाना होगा। तब यही शिव हमें सत्य का दर्शन कराएंगे।
शिव यह भी ज्ञान देते है की वे निराकार, अजन्मा, अविनाशी और अनंत है। शिव की सरलता का तो कोई पार ही नहीं है। वे तो अपने भक्त को कहते है जो कुछ भी सहजता से उपलब्ध हो वही मुझे अर्पित कर दो। मेरी भक्ति के लिए कोई बाध्यता ही नहीं है। भावों की माला से यदि जलधार भी चढ़ाओंगे तो वह भी मुझे स्वीकार्य है। सच में शिव कल्याण का ही दूसरा नाम है जो केवल दिखावे से दूर, आडंबर से मुक्ति, सत्य से साक्षात्कार और एकाग्र होकर राम नाम में रमण करने के प्रेरणा देते है। तो आइये शिव के प्रिय माह और प्रिय वार अर्थात सावन सोमवार को भावों की माला से शिव को भजने का प्रयास करें।
शिवजी का लिंग रूप अनेकों श्रंगार से भी सुशोभित होता है और शिव शंभू तो मात्र जल, बिल्वपत्र, धतूरा और भक्त के भाव से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। यह लिंग स्वरूप हर जगह विद्यमान है। आकाश, पाताल और मृत्युलोक सर्वत्र यह लिंग रूप वंदनीय है और अपनी अभीष्ट इच्छा को पूर्ण करने के लिए भक्तो के लिए सर्वत्र उपलब्ध है। यही शिव शंभू ज्योतिर्लिंग स्वरूप में भी भक्तों के लिए प्रत्यक्ष विराजमान है। इस लिंग रूप की आराधना और अर्चना के लिए कोई मुहूर्त और कठोर नियम नहीं है। सृष्टि की सबसे अनुपम जोड़ी शिवशक्ति इसी लिंग रूप में सुशोभित होती है। यह लिंग रूप मंदिरों तथा पीपल और वट वृक्ष के नीचे भी ध्याया जाता है। शिव पूजन में कोई समय सीमा और आडंबर नहीं है। जैसे योगीश्वर शिव सदैव ध्यानमग्न रहते है, यही संदेश वह अपने भक्तों को भी देते है और कहते है बिना किसी आडंबर के सिर्फ और सिर्फ मेरा सुमिरन और पूजन करें। कलयुग में तो नाम संकीर्तन को ही प्रमुख बताया गया है। तो क्यों न हम भूत भावन महेश्वर की लिंग रूप में आराधना कर सावन माह में श्रेष्ठ फल पाने की ओर अग्रसर हो। यह लिंग स्वरूप तो मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के पापों का भी क्षय कर देता है। लिंगाष्टकम स्तुति में शिव के इसी रूप की महिमा का वर्णन है।
भक्तवत्सल शिव तो करुणा का रूप है, वे ही पालनकर्ता है। श्रावणमास में समस्त सृष्टि उनके ही आदेश स्वरुप क्रियाओं का क्रियान्वयन करती है। शिव तो भव से पार लगाने वाले मुक्ति का द्वार है। भय और मृत्यु से निर्भीकता प्रदान करने वाले महाँकाल के चरणों में यदि कोई ध्यान लगा ले तो भोलेनाथ उसके मनोरथ सहज ही पूर्ण कर सकते है, पर हम ईश्वर का द्वार समस्त रास्ते बंद हो जाने पर खटखटाते है जबकि ईश्वर पर हमारा विश्वास अडिग होना चाहिए, क्योंकि प्रभु तो प्रत्येक प्राणी पर दया और कृपा ही करते है। शिव तो सदैव अंतर्मुखी होने की प्रेरणा देते है। वे तो मान-अपमान, यश-अपयश, मोहमाया से कोसों दूर है। शिव का पूजन-अर्चन तो मनुष्य को घोर पापों से मुक्ति दिलाता है और श्रावणमास तो शिव को प्रसन्न करने का सबसे सुलभ मार्ग है।